आश्चर्य हुआ कि, भाजपा के 47 विधायकों में से कोई मुख्यमंत्री के लायक नहीं निकला। हारे हुए खिलाड़ी को कप्तानी सौंपकर दिल्ली दरबार ने उत्तराखण्ड की जनता का मज़ाक उड़ाया है, खासकर खटीमा के मतदाताओं के मुंह पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया है कि तुम्हारे वोट की कोई औकात नहीं है। तुम्हारे सिर में उसी को नचायेंगे जिसको तुमने विधायक बनने के काबिल नहीं समझा था। अधिकांश उत्तराखण्ड की जनता को आशा थी कि उत्तराखण्ड सरकारमें भ्रष्टाचार पर रोक लगाने और बिना भेदभाव के फैसले करने में इस बार, किसी महिला को मुख्यमंत्री बनाकर मोदी एंड कंपनी एक नया संदेश देंगे, मगर वही ढाक के तीन पात।
सबसे बड़ी आहत करने वाली बात ये है कि, आर्थिक तंगी से जूझ रहे उत्तराखण्ड और उत्तराखण्डियों पर एक उपचुनाव का बोझ जबरदस्ती थोपा गया है, क्या इस उपचुनाव का खर्चा भाजपा अपने पार्टी फंड से उठायेगी ?
सारा खर्च उत्तराखण्ड वासियों के सिर मढ़ा जायेगा, भाजपा का बहुत ही गलत फैसला है, ये उत्तराखण्ड भाजपा के जीते हुए विधायकों की भारी तौहीन है।