देहरादून ; उत्तराखंड में नाग देवता के कई प्राचीन मंदिर स्थित है। जिनमें से टिहरी जिले के सेम मुखेम, पिंगली नाग मंदिर पिथौरागढ़, धौलीनाग मंदिर बागेश्वर और देहरादून जिले में स्थित नागथात मंदिर के प्रति लोगों में खूब आस्था देखने को मिलती है। वहीं इन मंदिरों के अपने रहस्य, इतिहास और मान्यताएं हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में…
- टिहरी जिले में स्थित सेम मुखेम नागराजा मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है।
- यह मंदिर सात हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
- पुराणों में कहा गया है कि अगर किसी की कुंडली में काल सर्प दोष है तो इस मंदिर में आने से दोष का निवारण हो जाता है।
- वहीं इस मंदिर से अनेक मान्यताएं भी जुड़ी हैं। द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण गेंद लेने के लिए कालिंदी नदी में उतरे थे तो उन्होंने कालिया नाग को भगाकर सेम मुखेम जाने को कहा था।
- तब कालिया नाग की विनती पर भगवान कृष्ण द्वारिका छोड़कर उत्तराखंड के रमोला गढ़ी में आकर मूर्ति रूप में स्थापित हो गए।
- इस मंदिर में श्रद्धालु काल सर्प दोष के निवारण और भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करने के लिए आते हैं।
- उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के पांखु गांव में स्थित पिंगली नाग मंदिर है।
- यहां के स्थानीय लोगों द्वारा गाय, भैस का पहला दूध तथा हर फसल का पहला अनाज, नाग देवता को चढ़ाया जाता है।
- उनकी मान्यता है कि नाग देवता उन्हें हर संकट से उबारते हैं और भक्तों के साथ अपनी कृपा बनाये रखते हैं।
- द्वापर युग में कालिया नाग यमुना नदी में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा पराजित किया तो वह धौलीनाग, बेरीनाग, फेनीनाग, वासुकिनाग, मूलनाग और आचार्य पिंगलाचार्य के साथ दशोली, गंगावली के निकट के पर्वत शिखरों में बस गए।
- तभी से स्थानीय निवासी पिंगलाचार्य को पिंगल नाग देवता के रूप में पूजने लगे। स्कंद पुराण के मानसखंड में नागों का विस्तार से वर्णन है।
- बताया जाता है कि एक ब्राह्मण को पिंगल नाग देवता ने सपने में अपने आने की सूचना दी थी। उसी ब्राह्मण ने पर्वत शिखर पर मंदिर निर्माण करवाया और विधिवत पूजा अर्चना संपन्न करवाई।
- धौलीनाग मंदिर बागेश्वर में है और कालिया नाग के सबसे बड़े पुत्र धौलीनाग देवता को समर्पित है।
- यह मंदिर विजयपुर के पास एक पहाड़ी पर स्थित है। प्रत्येक नाग पंचमी को मंदिर में मेला लगता है।
- मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण ने पराजित होने के बाद कालिया नाग उत्तराखंड के क्षेत्र में आया और भगवान शिव की तपस्या की।
- धौलीनाग ने शुरुआत में क्षेत्र के लोगों को काफी परेशान किया, जिसके बाद लोगों ने उसकी पूजा करना शुरू कर दिया।
- जिसके बाद धौली नाग देवता ने स्थानीय लोगों की कई प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा की और उन्हें भगवान का दर्जा दिया गया।
पुराणों के अनुसार कई ऋषि मुनि और देवता आज भी सशरीर जीवित हैं। जामवन्त का नाम भी शामिल हैं।