मुंबई; बात हालांकि कुछ भी नहीं थी, लेकिन उसका बतंगड़ ऐसा बनाया गया कि महाराष्ट्र के राज्यपाल को माफी मांगनी पड़ गई। दरअसल गत दिनों राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी ने मारवाड़ी समाज के कार्यक्रम में कहा कि महाराष्ट्र से, खासतौर से मुंबई और ठाणो से गुजराती और राजस्थानी समाज के लोग दूर जाने का फैसला कर लें तो यहां का सारा पैसा खत्म हो जाएगा और मुंबई देश की आर्थिक राजधानी रह ही नहीं जाएगी। कोश्यारी का यह बयान गुजराती और राजस्थानी समाज के व्यावसायिक कौशल की तारीफ करने के लिए था, लेकिन शिवसेना ने राज्यपाल के बयान को राजनीतिक मुद्दा बना दिया।
पूर्व मुख्यमंत्री एवं शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा कि राज्यपाल इस तरह का बयान देकर मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करना चाहते हैं। अब समय आ गया है कि उन्हें घर भेज दिया जाए। उद्धव इतने पर ही नहीं रुके। उन्होंने तो यहां तक कह डाला कि राज्यपाल के इस बयान पर उन्हें महाराष्ट्र की मशहूर कोल्हापुरी चप्पल दिखाने की जरूरत है। उद्धव के ही सुर में सुर मिलाते हुए तब खुली हवा खा रहे शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने कहा कि राज्य में भाजपा प्रायोजित मुख्यमंत्री बनते ही मराठी लोगों का अपमान शुरू हो गया है।
मुंबई को महाराष्ट्र से अलग किए जाने का डर दिखाना शिवसेना की पुरानी आदत रही है। वह पिछले 30 वर्षो से मुंबई महानगरपालिका की सत्ता पर काबिज है और जब भी उसे मुंबई की अपनी सत्ता पर खतरा दिखाई देता है, वह उसको महाराष्ट्र से अलग किए जाने का डर दिखाना शुरू कर देती है, लेकिन राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी ने जो कुछ भी कहा, उसे शिवसेना शासित मुंबई महानगरपालिका द्वारा करीब एक दशक पहले तैयार करवाई गई एक मानव विकास रिपोर्ट के आईने में देखने की जरूरत है। उस समय न तो देश में नरेन्द्र मोदी का शासन आया था, न ही राज्य में भाजपा सत्तासीन थी। तब राज्य में कांग्रेस-राकांपा गठबंधन की सरकार थी, और मुंबई महानगरपालिका में शिवसेना की महापौर शुभा राउल थीं।
महाराष्ट्र योजना आयोग के तत्कालीन उपाध्यक्ष डा. रत्नाकर महाजन के नेतृत्व में तैयार इस रिपोर्ट में दूसरे राज्यों से आए लोगों के मुंबई की अर्थव्यवस्था में योगदान की चर्चा भी की गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि अन्य राज्यों से आए लोगों ने मुंबई में ज्यादातर मेहनतवाले काम संभाले और मुंबई की अर्थव्यवस्था संभालने में मददगार साबित हुए। जब मुंबई के देश की आर्थिक राजधानी होने की चर्चा होती है तो यह भुलाया नहीं जा सकता कि सात जुलाई, 1854 को मुंबई में पहली काटन टेक्सटाइल मिल स्थापित करनेवाले एक पारसी उद्योगपति कावसजी नानाभाई डावर थे। इसके बाद तो मुंबई में छोटी-बड़ी करीब 130 कपड़ा मिलें स्थापित हुईं। इस इतिहास से भी मुंह नहीं चुराया जा सकता कि कोंकण और मराठवाड़ा से आए लाखों मराठी परिवारों पर रोजी-रोटी का संकट भले 1982 में डा. दत्ता सामंत द्वारा करवाई गई हड़ताल के बाद आया हो, लेकिन कपड़ा मिलों पर यूनियन की दादागीरी 1960 में शिवसेना की यूनियन भारतीय कामगार सेना के नेतृत्व में ही शुरू हो गई थी। जबकि मुंबई को समृद्धि देनेवाली इन कपड़ा मिलों के ज्यादातर मालिक बाद के दौर में वही गुजराती और राजस्थानी थे, जिनकी प्रशंसा में राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी ने कुछ शब्द कहकर मुसीबत मोल ले ली।