December 25, 2024

Devsaral Darpan

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उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष- नियम विरुद्घ भर्तियों पर मेरा निर्णय विधानसभा के हित और सदन की गरिमा बनाए रखने के लिए था !!

उत्तराखंड;  हाईकोर्ट की खंडपीठ (डबल बेंच) के आदेश से विधानसभा में तदर्थ आधार पर भर्ती 228 कर्मचारियों को बड़ा झटका लगा है। खंडपीठ ने कर्मचारियों की बर्खास्तगी मामले में एकल पीठ के स्थगन आदेश को खारिज किया है। विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने खंडपीठ के फैसले को न्याय की जीत बताया। उन्होंने कहा कि सत्य परेशान हो सकता है, लेकिन पराजित कभी नहीं हो सकता। विधानसभा के हित, सदन की गरिमा और प्रदेश के युवाओं को न्याय दिलाने के लिए भर्ती प्रकरण को अंतिम निर्णय तक लड़ा लाएगा।

मिली जानकारी के अनुसार,  विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि नियम विरुद्घ भर्तियों पर मेरा निर्णय विधानसभा के हित और सदन की गरिमा को बनाए रखने के लिए था। 2016 से 2021 में हुई 228 भर्तियों को रद्द करने का निर्णय लेते समय में मैंने यह बात कही थी कि युवाओं के हित में कठोर निर्णय लेने पड़े तो पीछे नहीं हटुंगी। उसी क्रम में एकल पीठ के स्टे आदेश को लेकर डबल बेंच में गए। खंडपीठ ने विधानसभा के निर्णय को सही ठहराते हुए एकल पीठ के आदेश को खारिज किया है।

खंडूड़ी ने कहा कि मेरा निर्णय किसी व्यक्ति विशेष के विरुद्घ नहीं था, बल्कि उस प्रक्रिया से था जो न्याय संगत नहीं है और संविधान के विरुद्घ था। भर्तियों में प्रदेश के लाखों युवाओं को समानता का अवसर नहीं मिला। उन्होंने प्रदेश के युवाओं को भरोसा दिलाया कि विश्वास रखें।

ये था मामला : विधानसभा में बैकडोर भर्तियों का मामला सामने आने पर तीन सितंबर 2022 को विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने पूर्व आईएएस डीके कोटिया की अध्यक्ष में विशेषज्ञ समिति गठित की। इस समिति में सुरेंद्र सिंह रावत, अवनेंद्र सिंह नयाल सदस्य थे। समिति ने 20 दिन के भी भर्तियों की जांच कर 22 सितंबर को 214 पेज की रिपोर्ट सौंपी। समिति ने जांच में पाया कि वर्ष 2016, 2020, 2021 में तदर्थ आधार पर की गई भर्ती नियम विरुद्ध की गई थीं। समिति की रिपोर्ट पर विधानसभा अध्यक्ष ने 2016 में 150, वर्ष 2020 में छह और वर्ष 2021 में 72 तदर्थ भर्तियों को रद्द किया था, जिसके बाद 228 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया गया। विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय के खिलाफ बर्खास्त किए कर्मचारियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। एकल पीठ ने स्टे देकर बर्खास्तगी पर रोक लगाई थी।
संपादन: अनिल मनोचा
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