उत्तराखण्ड; सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उत्तराखंड हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप की सीबीआई जांच करने का निर्देश दिया गया था।
मिली जानकारी के अनुसार, पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के मेरे विरुद्ध दिए गए निर्णय को पूरी तरह खारिज कर दिया। न्यायालय ने यहां तक कहा कि उच्च न्यायालय का फैसला प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मेरे खिलाफ साजिश करने वालों के मुंह पर तमाचा लगा है। मैं सुप्रीम कोर्ट और अपने अधिवक्ताओं का धन्यवाद करता हूं। मेरी प्रतिष्ठा को जिसने ठेस पहुंचाई, उसके खिलाफ आगे की कार्रवाई के लिए विधिक राय लेकर फैसला लूंगा।
उच्च न्यायालय ने 27 अक्तूबर 2020 को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच सीबीआई से कराने के आदेश दिए थे। विपक्ष ने उनकी छवि को लेकर सवाल उठाए थे और इस्तीफे की मांग तक कर डाली थी। कोर्ट के फैसले के खिलाफ त्रिवेंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की थी। 29 अक्तूबर 2020 को सर्वोच्च अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। सर्वोच्च अदालत ने बुधवार को सीबीआई जांच के हाईकोर्ट के आदेश को खारिज भी कर दिया।समर्थकों में खुशी की लहर : सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद त्रिवेंद्र समर्थकों में खुशी की लहर है। उन्होंने कहा कि यह पूर्व सीएम की एक बड़ी जीत है। उन्होंने पूरी ईमानदारी, कर्मठता के साथ प्रदेश की सेवा निस्वार्थ भाव से की। उनके खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोप तत्कालीन सरकार को अस्थिर करने की साजिश भी थे। अदालत का यह फैसला साजिशकर्ताओं के खिलाफ एक बड़ा निर्णय है। इससे ईमानदार और साहसिक नेताओं को हौसला मिलेगा, जिनके खिलाफ भ्रष्चाचार और षडयंत्रकारी कोई भी आरोप लगाकर उन्हें कानूनी उलझन में फंसाने की कोशिश करते हैं।
यह था मामला : हाईकोर्ट का फैसला पत्रकारों द्वारा दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर आया था, जिनमें जुलाई 2020 में उनके खिलाफ आईपीसी के विभिन्न प्रावधानों के तहत दर्ज की गई प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की गई थी। शर्मा द्वारा सोशल मीडिया पर रावत पर आरोप लगाने के बाद जालसाजी और धोखाधड़ी सहित आईपीसी के विभिन्न प्रावधान के तहत मामला दर्ज किया गया था। शर्मा ने आरोप लगाया था कि उन्होंने 2016 में गौ सेवा आयोग के प्रमुख के रूप में उस राज्य में एक व्यक्ति की नियुक्ति का समर्थन करने के लिए अपने रिश्तेदारों के खातों में कथित रूप से धन हस्तांतरण किया था। रावत 2017 से 2021 के बीच उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे थे।
उच्च न्यायालय ने 27 अक्तूबर 2020 को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच सीबीआई से कराने के आदेश दिए थे। विपक्ष ने उनकी छवि को लेकर सवाल उठाए थे और इस्तीफे की मांग तक कर डाली थी। कोर्ट के फैसले के खिलाफ त्रिवेंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की थी। 29 अक्तूबर 2020 को सर्वोच्च अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। सर्वोच्च अदालत ने बुधवार को सीबीआई जांच के हाईकोर्ट के आदेश को खारिज भी कर दिया।
समर्थकों में खुशी की लहर : सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद त्रिवेंद्र समर्थकों में खुशी की लहर है। उन्होंने कहा कि यह पूर्व सीएम की एक बड़ी जीत है। उन्होंने पूरी ईमानदारी, कर्मठता के साथ प्रदेश की सेवा निस्वार्थ भाव से की। उनके खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोप तत्कालीन सरकार को अस्थिर करने की साजिश भी थे। अदालत का यह फैसला साजिशकर्ताओं के खिलाफ एक बड़ा निर्णय है। इससे ईमानदार और साहसिक नेताओं को हौसला मिलेगा, जिनके खिलाफ भ्रष्चाचार और षडयंत्रकारी कोई भी आरोप लगाकर उन्हें कानूनी उलझन में फंसाने की कोशिश करते हैं।
यह था मामला : हाईकोर्ट का फैसला पत्रकारों द्वारा दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर आया था, जिनमें जुलाई 2020 में उनके खिलाफ आईपीसी के विभिन्न प्रावधानों के तहत दर्ज की गई प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की गई थी। शर्मा द्वारा सोशल मीडिया पर रावत पर आरोप लगाने के बाद जालसाजी और धोखाधड़ी सहित आईपीसी के विभिन्न प्रावधान के तहत मामला दर्ज किया गया था। शर्मा ने आरोप लगाया था कि उन्होंने 2016 में गौ सेवा आयोग के प्रमुख के रूप में उस राज्य में एक व्यक्ति की नियुक्ति का समर्थन करने के लिए अपने रिश्तेदारों के खातों में कथित रूप से धन हस्तांतरण किया था। रावत 2017 से 2021 के बीच उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे थे।