देहरादून; 108 एंबुलेंस सेवा मरीजों को सिर्फ अस्पताल पहुंचाने का ही काम नहीं करती बल्कि नवजातों की जिंदगी की डोर टूटने से बचाने में भी अहम भूमिका निभाती है। वर्ष 2019 से 2023 तक देहरादून जिले में 108 एंबुलेंस में 423 बच्चों की किलकारियां गूंज चुकी हैं।
108 सेवा 15 मई 2008 को शुरू हुई थी। तभी से यह लगातार मरीजों को अस्पताल ले जाने का काम बखूबी कर रही है। जिले में इस समय 108 सेवा की 32 एंबुलेंस मौजूद हैं। सीएएमपी कंपनी इसका कर रही है। सेवा के डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डिनेटर एवं ऑपरेशन मैनेजर मुकेश नौटियाल ने बताया कि प्रसव पीड़ा होने पर किसी गर्भवती के घर से फोन आता है तो एंबुलेंस 15 से 20 मिनट के अंदर मौके पर पहुंच जाती है।
कई बार प्रसव पीड़ा बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में एंबुलेंस बीच रास्ते में रोककर इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन (ईएमटी) की मदद से गाड़ी में ही प्रसव करवाना पड़ता है। इस कार्य के लिए एंबुलेंस के ईएमटी को ट्रेनिंग भी दी जाती है ताकि जररूत का इलाज कर सकें। इसके बाद जच्चा और बच्चा को अस्पताल में भर्ती कराया जाता है। पिछले पांच साल में 423 ऐसे मामले हुए हैं।
19 वाहनों से हुई थी शुरुआत : 108 सेवा की शुरुआत 19 वाहनों से हुई थी लेकिन आज 32 एंबुलेंस उपलब्ध हैं। 2021 के कुंभ में कुछ अतिरिक्त वाहन लगाए गए थे। सीएचसी, जिला अस्पताल, दून मेडिकल कॉलेज समेत ब्लॉक स्तर पर भी एंबुलेंस मौजूद हैं। मसूरी से दून के बीच चार एंबुलेंस हैं। सेलाकुई, आईएसबीटी, कारगी समेत अन्य जगहों पर भी अब एंबुलेंस खड़ी रहती है।
सात एंबुलेंस गंभीर मरीजों के लिए : 108 सेवा की सात एंबुलेंस एडवांस लाइफ सपोर्ट (एलएस) की हैं। इनमें गंभीर मरीजों के लिए कार्डियक मॉनिटर, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन सिलिंडर, सिरिंज पंप आदि मौजूद रहता है। अन्य एंबुलेंस में ऑक्सीजन सिलिंडर समेत फर्स्ट एड बॉक्स मौजूद रहता है।