देहरादून; उत्तराखंड में सरकारी कार्मिक केंद्र सरकार की भांति सातवां वेतनमान तो ले ही रहे हैं, साथ में कई संवर्गों विशेष रूप से फील्ड कार्मिकों का ग्रेड वेतन केंद्र सरकार से भी अधिक है। देश के कई बड़े और आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत सशक्त राज्यों में अभी न तो सातवां वेतनमान दिया गया है और न ही केंद्र से वेतनमान में समानता है।
वित्तीय संसाधन बेहद सीमित होने के बाद भी उत्तराखंड ने राज्य के कुल खर्च में वेतन की भागीदारी के मामले में कई राज्यों को पछाड़कर शीर्ष स्थान पा लिया है। इस बढ़ते वित्तीय भार के कारण ही प्रदेश सरकार को केंद्र के समान ग्रेड वेतनमान की व्यवस्था लागू करने का निर्णय लेना पड़ा।
प्रदेश के कुल बजट खर्च में वेतन की भागीदारी 32.81 प्रतिशत हो चुकी है। यह देश में सर्वाधिक मानी जा रही है। इससे पीछे मात्र जम्मू-कश्मीर है। वहां राज्य के कुल खर्च में वेतन का हिस्सा 31.98 प्रतिशत है। इसीप्रकार उत्तर प्रदेश में 15.15 प्रतिशत, पंजाब में 25.87 प्रतिशत, राजस्थान में 27.05 प्रतिशत, दिल्ली में 22.42 प्रतिशत और बंगाल में 25.09 प्रतिशत है।
कर्मचारियों के वेतन-भत्तों, पेंशन के रूप में हो रहा खर्च इतना अधिक हो चुका है कि विकास कार्यों के लिए धन की व्यवस्था करने में सरकार के पसीने छूट रहे हैं। कुल बजट का 20 प्रतिशत से कम निर्माण कार्यों पर खर्च हो रहा है। चालू वित्तीय वर्ष 2022-23 में यह 16.07 प्रतिशत है। इससे पहले यानी वित्तीय वर्ष 2021-22 में यह 15 प्रतिशत के आसपास ही था।
वेतन विसंगति समिति ने हाल ही में इस बारे में प्रदेश सरकार से संस्तुति की थी। समिति की संस्तुति पर अमल करना पड़ा। राज्य को बड़ा झटका 30 जून, 2022 के बाद केंद्र से जीएसटी प्रतिपूर्ति न होने के रूप में भी लगा है। उत्तराखंड में पिछले 10 वर्षों में वेतन-भत्तों पर तीन गुना और पेंशन पर पांच गुना खर्च बढ़ा है।
कोरोना संकट काल में भी उत्तराखंड ने अन्य राज्यों की तुलना में अपने कार्मिकों को वेतन देने में उदारता दिखाई थी। अपर मुख्य सचिव वित्त आनंद बर्द्धन ने कहा कि राज्य के पास वित्तीय संसाधन सीमित हैं। वेतन-भत्तों और पेंशन का भार राज्य पर हर वर्ष बढ़ता जा रहा है। इसे ध्यान में रखकर ही मंत्रिमंडल ने नई नियुक्तियों में केंद्र के समान ही ग्रेड वेतन रखने का निर्णय लिया है। इससे अधिक ग्रेड वेतन नहीं देने को स्वीकृति दी गई।