नई दिल्ली: ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन के बीच तनातनी युद्ध के स्तर पर पहुंच गई है। अमेरिका ने चीन को यह साफ संदेश दे दिया है कि वह ताइवान की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। ऐसे में यह जिज्ञासा पैदा होती है कि आखिर एक छोटे से द्वीप के लिए अमेरिका ने चीन से पंगा क्यों लिया। ताइवान अमेरिका के लिए क्यों उपयोगी है। इसके साथ यह भी जानेंगे कि चीन ताइवान को क्यों अपना प्रांत मानता है। इस विवाद के पीछे वजह क्या है। इसके साथ यह भी जानेंगे कि अमेरिका का कौन सा कानून ताइवान की सुरक्षा का बड़ा कवच है। चीन अपने किस कानून के तहत ताइवान को धौंस दिखाता है।
सामरिक रूप से क्यों उपयोगी है ताइवान
विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि सामरिक रूप से ताइवान द्वीप अमेरिका के लिए काफी उपयोगी है। अमेरिका की विदेश नीति के लिहाज से ये सभी द्वीप काफी अहम हैं। चीन यदि ताइवान पर अपना प्रभुत्व कायम कर लेता है तो वह पश्चिमी प्रशांत महासागर में अपना दबदबा कायम करने में सफल हो सकता है। उसके बाद गुआम और हवाई द्वीपों पर मौजूद अमेरिकी सैन्य ठिकाने को भी खतरा हो सकता है। इसलिए अमेरिका, ताइवान को लेकर पूरी तरह से चौंकन्ना है। उन्होंने कहा कि यहीं कारण है कि अमेरिका ने ताइवान के साथ उसकी सुरक्षा का समझौता किया है।
कार्टर से बाइडन तक ताइवान के रिश्ते
- अमेरिका में अलग-अलग राष्ट्रपति के कार्यकाल में ताइवान की नीति भिन्न रही है। ताइवान को लेकर अमेरिका नीति एक जैसी नहीं रही है। 1979 में तत्कालीन राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने चीन के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करने के लिए ताइवान के साथ आधिकारिक संबंध समाप्त कर लिए थे। उस वक्त अमेरिकी कांग्रेस ने ताइवान रिलेशंस एक्ट पारित किया था। यह कानून इस बात की अनुमति देता था कि अमेरिका ताइवान को रक्षात्मक हथियारों की बिक्री कर सकता था। ताइवान को लेकर अमेरिकी की नीति में एक तरह की रणनीतिक अस्पष्टता दिखाई देती रही है।
- ताइवान को लेकर वर्ष 1996 में अमेरिका और चीन के बीच सबसे अधिक तनाव देखा गया। दरअसल, ताइवान के राष्ट्रपति चुनाव को अपने तरीके से प्रभावित करने के लिए चीन ने मिसाइल परीक्षण किए। इसके जवाब में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने बड़े पैमाने पर अमेरिका सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया, जिसे वियतनाम युद्ध के बाद एशिया में सबसे बड़ा अमरीकी सैन्य प्रदर्शन कहा गया था। अमेरिका ने ताइवान की ओर बड़े युद्धक विमान को भेजकर चीन को संदेश देने की कोशिश की थी कि ताइवान की सुरक्षा से अमरीका कोई समझौता नहीं करेगा।
- वर्ष 2001 में तत्कालीन राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने कहा था कि चीन के हमले से ताइवान को बचाने के लिए जो भी जरूरी होगा, वह करेंगे। ताइवान और चीन के मामले में अमेरिका सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कहता कि वह हमले की सूरत में क्या करेगा। इससे चीन की मुश्किल बढ़ जाती है। चीन इस बात को लेकर दुविधा में रहता है कि अगर उसने ताइवान पर हमला किया तो अमेरिका की कितनी कठोर प्रतिक्रिया हो सकती है।
चीन और ताइवान के तल्ख हुए रिश्ते
वर्ष 2000 में चेन श्वाय बियान ताइवान के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। बियान ने ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन किया। यह बात चीन को हजम नहीं हुई। तब से ताइवान-चीन के रिश्ते काफी तल्ख हो गए। डोनल्ड ट्रंप के कार्यकाल में ताइवान और अमेरिका एक-दूसरे के नजदीक आए। अपने कार्यकाल के दौरान ट्रंप ने ताइवान की तत्कालीन राष्ट्रपति साइ इंग वेन से फोन पर वार्ता की थी। इसे अमेरिका की ताइवान को लेकर चली आ रही नीति में बड़े बदलाव के संकेत के तौर पर देखा गया था। मौजूदा राष्ट्रपति बाइडन भी अपने पूर्ववर्ती ट्रंप की तरह ताइवान को संरक्षण दे रहे हैं।
क्या है चीन का अलगाववादी विरोधी कानून
हांगकांग की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति की तरह वर्ष 2005 में चीन ने अलगाववादी विरोधी कानून पारित किया था। चीन इस कानून के तहत ताइवान को बलपूर्वक मिलाने का अधिकार रखता है। इस कानून की आड़ में चीन कई बार ताइवान को धौंस देता रहा है, लेकिन वह अभी तक ताइवान को मिलाने में नाकाम रहा है। इस कानून के तहत यदि ताइवान अपने आप को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित करता है तो चीन की सेना उस पर हमला कर सकती है। हालांकि, कई साल के तनाव और धमकियों के बाद ताइवान ने अपनी आजादी कायम रखी है। चीन की सरकार बार-बार कहती रही है कि वह ताइवान को ताकत के दम पर चीन में मिला लेगा। इन धमकियों के बावजूद चीन आज तक ताइवान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई नहीं कर पाया।
15 देशों ने ही ताइवान को एक स्वतंत्र राष्ट्र माना
चीन और ताइवान के बीच विवाद काफी पुराना है। इसकी बुनियाद 1949 में पड़ी। दुनिया के सिर्फ 15 देश ही ताइवान को एक स्वतंत्र राष्ट्र मानते हैं। इस विवाद के कारण ही ताइवान को सीमित देशों की ही मान्यता हासिल हो सकी। ताइवान के प्रति चीन का दृष्टिकोण अलग है। चीन इसे अपने से अलग हुआ हिस्सा मानता है और ताइवान को एक विद्रोही प्रांत मानता है।
चीन की नाक के नीचे है ताइवान
ताइवान की चीन से दूरी महज 180 किलोमीटर है। ताइवान की भाषा चीनी है। ताइवान की राजनीतिक व्यवस्था चीन से एकदम भिन्न है। चीन और ताइवान की भिन्न राजनीतिक व्यवस्था भी दोनों को एक-दूसरे का विरोधी बनाते हैं। चीन में एकदलीय व्यवस्था है, जबकि 2 करोड़ 30 लाख की आबादी वाले ताइवान की व्यवस्था लोकतांत्रिक है।