देहरादून ; आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा देश पिछले 75 वर्ष से हर क्षेत्र में उन्नति के पथ पर कुलांचे भर रहा है। इसमें उन शरणार्थियों का भी भरपूर योगदान है, जो विपरीत परिस्थितियों में अपनी जीवटता से पुरुषार्थी बनकर सामने आए।
विभाजन के बाद पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के चकवाल जिले से देहरादून आए सरदारी लाल ओबेराय का परिवार भी अपने कड़े परिश्रम से स्वावलंबन की मिसाल बन गया। कभी चूना पत्थर बेचकर गुजारा करने वाला यह परिवार आज अपनी कठोर मेहनत सफलता के पहियों पर सवार है।
सरदारी लाल ओबराय के बेटे राकेश ओबेराय बताते हैं कि पाकिस्तान में निवास के दौरान पिता सेंधा नमक बनाते थे। लेकिन, विभाजन के बाद देश में खिंची लकीर ने सब बदल दिया।
पाकिस्तान में हिंदू परिवारों को निशाना बनाया जाने लगा तो पिताजी, मां शकुंतला और दो पुत्रियों रमा व इंदु के साथ दिल्ली आ गए। उस समय तक मेरा जन्म नहीं हुआ था।
दिल्ली में मेरी बुआ की ससुराल थी और फूफा पुलिस विभाग में कार्यरत थे। उन्होंने हमारे परिवार को शरण दी। कुछ दिन बाद पिता ने दिल्ली के सदर बाजार में परचून की दुकान खोली, जो चली नहीं। छह माह बाद दुकान बेचकर वह परिवार सहित देहरादून आ गए।
राकेश ओबेराय का जन्म वर्ष 1948 में देहरादून में हुआ। वह बताते हैं कि इसी वर्ष सरदारी लाल ने देहरादून के झड़ीपानी में किराये का कमरा लिया और यहां मौजूद पहाड़ों से चूना पत्थर निकालकर उसे बड़े कारोबारियों को बेचने लगे। सरदारी लाल दिनभर मजदूरों के साथ चूना पत्थर निकालते और फिर उसे खच्चरों व बैलगाड़ी से बाजार पहुंचाते।
कई वर्षों तक यह क्रम चलता रहा। इसी बीच वर्ष 1952 में सरदारी लाल के दूसरे बेटे अमरीश इस दुनिया में आए। 60 के दशक में ओबराय परिवार ने पत्थर ढुलान के लिए पुराना वाहन खरीदकर व्यापार को बढ़ाया। लेकिन, पर्यावरणीय अड़चनों के कारण वर्ष 1988 में चूना पत्थर का कारोबार बंद करना पड़ा। तब उन्होंने पुराने वाहनों की बिक्री का काम शुरू किया।
इस बीच राकेश ने आइआइटी रुड़की से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर ली तो बेटों के साथ वर्ष 1990 में राजपुर रोड पर डीसीएम टोयटा का शोरूम खोला। इसके बाद ओबराय परिवार साल दर साल उन्नति करता रहा। वर्तमान में राकेश ओबराय के माजरा, मोहब्बेवाला और त्यागी रोड में चार कार शोरूम हैं। राजपुर रोड पर ओयशिश नाम से विद्यालय भी है। इनका संचालन वह पुत्र राघव ओबराय के साथ करते हैं।
सरदारी लाल ने कारोबार को बढ़ाने के साथ समाज के लिए भी अपने दरवाजे हमेशा खुले रखे। शहर के प्रमुख विद्यालयों में शामिल सनातन धर्म बन्नू इंटर कालेज प्रारंभ करने में उनका अहम योगदान रहा। इसके अलावा उन्होंने सनातन धर्म सभा का गठन भी किया।
पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए राकेश ओबराय ने भी एमकेपी इंटर कालेज और हिमज्योति स्कूल की समिति का अध्यक्ष रहते हुए इनको सहयोग किया। सरदारी लाल की पत्नी और दोनों पुत्रियों की मृत्यु कैंसर से हुई थी। ऐसे में ओबराय परिवार दून में कैंसर अस्पताल को लेकर संकल्पित रहा। कैंसर अस्पताल के लिए राकेश ओबराय ने प्रदेश सरकार को हर्रावाला में 15 बीघा जमीन दान दी है।