December 23, 2024

Devsaral Darpan

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ऑपरेशन मेघदूत- जिसमें उन्नीस सैनिक लापता हुए थे, भारत के लिए खास था।

उत्तराखंड; भारत-पाकिस्तान के बीच 1947 के बंटवारे के बाद से ही दोनों देशों के बीच हमेशा से ही तनातनी बनी रहती है। 1947 और फिर 1965 के युद्ध के बाद भारत ने पड़ोसी पाकिस्तान के खिलाफ एक बार फिर आक्रामक रणनीति अपनाई। जम्मू-कश्मीर पर पकड़ बनाने को 1984 में सबसे ऊंची चोटी में युद्ध को ‘ऑपरेशन मेघदूत’ का नाम दिया गया था। विषम हालातों में ऑपरेशन मेघदूत काफी भयावह और खतरनाक था। कुमाऊं रेजिमेंट ने खेरू से सियाचिन के लिए पैदल कूच किया। रेजिमेंट के उन्नीस सैनिक लापता हो गए थे और अड़तीस साल बाद शहीद चंद्रशेखर का शव मिला।

सहायक सैनिक कल्याण अधिकारी पुष्कर भंडारी ने बताते हैं कि इसके लिए वीरों की भूमि उत्तराखंड के  कुमाऊं मंडल  से कुमाऊं रेजिमेंट की कई बटालियन ने कूच किया। विषम हालातों में ‘ऑपरेशन मेघदूत’ काफी भयावह और खतरनाक था। कुमाऊं रेजिमेंट ने खेरू से सियाचिन के लिए पैदल कूच किया। एक के बाद एक बटालियन ऊंची चोटियों पर कब्जा करती रही। लेकिन सियाचिन की सबसे कठिन चोटी को फतह करते समय हिमस्खलन हो गया।

हिमस्खलन की चपेट में आने से बटालियन के सभी जवान शहीद हो गए।  13 अप्रैल 1984 को भारतीय सेना के जांबाजों ने दुनिया की सबसे ऊंची रणभूमि पर अपना कब्जा जमाया था।  16 हजार फीट से भी ऊंची बर्फिली चोटियों पर भारतीय सेना के रणबांकुरे चौबीसों घंटे पहरा देते हैं। सियाचिन पर भारतीय सेना की पकड़ के साथ ही भारत की स्थिति भी मजबूत हो गई है।

वीरांगना शांति ने जिस पति का यह सोचकर 38 साल इंतजार किया कि एक दिन वह जरूर आएंगे, लेकिन एक फोन कॉल ने उनके इंतजार का धागा तोड़ दिया। एक बार फिर 38 साल पुराने जख्म हरे हो गए।  वीरांगना शांति के लिए एक दिन ऐसा नहीं बीता, जिस दिन उन्होंने पति लांसनायक चंद्रशेखर की सलामती के लिए भगवान से प्रार्थना न की हो। हर रात वह भगवान से यही मांगती कि आने वाली सुबह उनके पति की कोई सुखद सूचना लेकर आए।

शनिवार को उन्हें फोन तो आया, लेकिन यह फोन पति की सलामती की खबर के लिए नहीं, बल्कि उनके शव मिलने की जानकारी के लिए था। यह सुनते ही एक बार फिर उनका 38 साल पुराना दर्द उभर आया। उनकी जुबान से शब्द गायब हो गए। बस सूख चुके आंखों से एक बार फिर आंसुओं की धार बरसने लगी। एक पल के लिए उनका भगवान से भरोसा उठ गया। लड़खड़ाती जुबान से नाते-रिश्तेदारों को यह बात बताई। परिजनों ने उन्हें दिलासा दिलाई कि कम से कम शहीद पति के अंतिम दर्शन हो पाएंगे। लेकिन इस फोन के साथ पति के सकुशल लौटने की उम्मीद ने भी दम तोड़ दिया।

वीरांगना शांति देवी बताती हैं कि हादसे के बाद उन्हें सेना की ओर से तार मिला, जिस पर लिखा था कि लांसनायक चंद्रशेखर ने शहादत पाई है। यह सुनते ही उनकी जिंदगी बदल गई। मन में दो बेटियों के भविष्य को लेकर तरह-तरह के सवाल उठने लगे। वह स्वयं के साथ बूढ़ी सास और दो छोटी बेटियों को कैसे संभाल पाएंगी। इसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।

 

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