मास्को; यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद अमेरिका और यूरोपीय देशों ने उस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं। इन प्रतिबंधों का मकसद रूस की आर्थिक कमर तोड़ना है। लेकिन, क्या यूरोप और अमेरिका अपने मकसद में कामयाब हो पाए हैं। ये सवाल इसलिए खास है क्योंकि प्रतिबंधों के बाद भी रूस के यूक्रेन पर हमलों में न तो कोई कमी आई है और न ही रूस किसी से भी इन प्रतिबंधों को हटाने के गिड़गिड़ाता हुआ ही दिखाई दे रहा है। इसका एक सीधा सा अर्थ ये भी निकाला जा सकता है कि तुरुप का पत्ता अब भी रूस के ही पास है।
मिली जानकारी के अनुसार, रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी लड़ाई में मास्को के हाथों में गैस की जो पाइपलाइन है, वो केवल उसके लिए एक बड़ा हथियार ही नहीं है बल्कि यूरोप की जीवन रेखा है। इसलिए यदि ये कहा जाए कि यूरोप की लाइफ लाइन रूस के हाथों में है तो गलत नहीं होगा। इसको दूसरी तरह से भी समझा जा सकता है। रूस की आर्थिक कमर तोड़ने के लिए अमेरिका ने जो प्रतिबंध लगाए थे उससे उलट रूस ने गैस और तेल से जबरदस्त कमाई की है। रायटर के मुताबिक रूस के वित्त मंत्रालय ने मौजूदा वित्तीय वर्ष में ही एनर्जी एक्सपोर्ट से करीब 337.5 अरब डालर की कमाई होने का अनुमान लगाया है।
मिली जानकारी के अनुसार, रूस पर लगे प्रतिबंधों की वजह से मास्को को गैस की कीमत रूबल में चुकानी पड़ी है। हालांकि, रूस पर इन प्रतिबंधों का कोई प्रभाव न पड़ा हो ऐसा भी नहीं है। डालर के मुकाबले रूबल कुछ कमजोर जरूर हुआ है। इसके बावजूद गैस और तेल से हुई कमाई से रूस को सेना पर खर्च करने और दूसरी चीजों को पूरी करने के लिए काफी मदद मिल जाएगी। ये कमाई मंदी और महंगाई की मार झेल रही रूस की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी राहत भी होगी।
माना जा रहा है कि रूसी गैस निर्यात की औसत कीमत इस साल पिछले वर्ष की तुलना में डबल हो जाएगी। इसके मुताबिक ये प्रति एक हजार क्यूबिक मीटर के लिए 730 डालर तक होगी और वर्ष 2025 में इसमें कमी आनी शुरू होगी। इसका सीधा सा अर्थ है कि ये सेक्टर रूस को डूबने नहीं देगा। ये बात जगजाहिर है कि यूरोप रूस की गैस के बिना जी नहीं सकता है। इसलिए रूस को झुकाना उसके लिए बहुत मुश्किल होगा।
मिली जानकारी के अनुसार, अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंधों का रूप के अलग-अलग हिस्सों पर प्रभाव भी अलग-अलग हुआ है। इन प्रतिबंधों से कार मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर, आईटी और फाइनेंस सेक्टर खासा प्रभावित हुआ है। इसकी वजह है कि इनका पश्चिमी देशों से काफी मजबूत संबंध था। वहीं कुछ दूसरे सेक्टर इससे कम प्रभावित हुए हैं।
यूरोप को रूस से होने वाली गैस की सप्लाई में लगातार कमी हो रही है। इस तरह से उसके लिए ये सर्दी काटना भी मुश्किल होगा। रूस ये भी कह चुका है कि नार्ड स्ट्रीम पाइपलाइन में कई टरबाइन को मरम्मत की जरूरत है। इन सभी की मरम्मत में तीन वर्ष का समय लग सकता है। ऐसे में रूस के वित्त मंत्रालय के दस्तावेज इस बात की गवाही दे रही है कि रूसी निर्यातक गाजप्रोम की गैस सप्लाई मौजूदा वर्ष में घट कर 170.4 अरब क्यूबिक मीटर हो जाएगी।
गैस की कमी इसकी कीमतों में और अधिक उछाल ला देगी। एक तरफ जहां रूस ने यूरोप से गैस की सप्लाई में कमी की है तो वहीं दूसरी तरफ आयल प्रोडेक्शन को बढ़ा भी दिया हे। प्रतिबंधों के बावजूद कुछ देश उससे लगातार तेल खरीद रहे हैं। गाजप्रोम चीन को भी गैस की सप्लाई बढ़ाने की तैयारी में है।
संपादन: अनिल मनोचा