नई दिल्ली; चीन अपने सैन्य अभ्यास के जरिए ताइवान को डराने के लिए भरसक प्रयास में जुटा है, हालांकि ताइवान किसी भी हाल में झुकने को तैयार नहीं है। अमेरिकी कांग्रेस की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद चीन और ताइवान के बीच जंग जैसे हालात हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या चीन और ताइवान के बीच युद्ध होगा। अगर यह युद्ध हुआ तो इसमें अमेरिका, जापान और पश्चिमी देशों की क्या भूमिका होगा। एक सवाल और कि जिस तरह से जापान और क्वाड के अन्य देशों ने ताइवान के प्रति अपनी दिलचस्पी दिखाई है, उससे यह तय माना जा रहा है कि अब यह जंग चीन और ताइवान तक सीमित नहीं रहेगी। क्या ऐसे में दुनिया एक और महायुद्ध की दिशा में आगे बढ़ रही है।
मिली जानकारी के अनुसार, बौखलाया चीन ताइवान के खिलाफ लगातार बड़े कदम उठाने की चेतावनी दे रहा है। इतना ही नहीं वह ताइवान सीमा पर युद्ध जैसी तैयारियों कर रहा है। इसीलिए यह सवाल दुनिया को भयभीत कर रहा है कि क्या चीन ये तैयारी सिर्फ ताइवान और उसके मित्र देशों को डराने के लिए कर रहा है या फिर वो सच में ताइवान पर हमला कर सकता है। विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि ताइवान का मामला अब चीन के लिए भी नाक का विषय बन चुका है। उन्होंने कहा कि लेकिन चीन यह जानता है कि अब यह युद्ध चीन और ताइवान के बीच नहीं होगा। उन्होंने कहा कि जापान ने ताइवान के पक्ष में जो दिलचस्पी दिखाई है, उससे यह तय हो गया है कि इस जंग में चीन के खिलाफ अमेरिका एवं पश्चिमी देशों के साथ क्वाड देश भी ताइवान के पक्ष में उतर सकते हैं।
प्रो हर्ष वी पंत का कहना है नैंसी के बाद आने वाले दिनों में ब्रिटेन समेत कई पश्चिम देशों का प्रतिनिधिमंडल ताइवान की यात्रा पर जाने वाला है। इस यात्रा से इस क्षेत्र में तनाव और गहरा हो सकता है। उन्होंने कहा जिन देशों का प्रतिनिधिमंडल ताइवान की यात्रा पर जाने वाला है, वह चीन के विरोधी राष्ट्र है। ज्यादातर राष्ट्र नाटो के सदस्य देश हैं। ऐसे में ताइवान और चीन का मामला और गरमा सकता है। इस यात्रा का मकसद कहीं न कहीं यह संदेश देना है कि वह हर संकट में ताइवान के साथ खड़े हैं। उधर, चीन की वायु सेना लगातार ताइवान के क्षेत्र में घुस रही हैं। चीन ऐसा करके यह संदेश दे रहा है कि वह इन यात्राओं से दबाव में आने वाला नहीं है। वह अपने विचार और संकल्प पर कायम है।
प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि चीन जब तक आश्वस्त नहीं हो जाएगा कि वह ताइवान पर विजय हासिल कर लेगा तब तक वह ताइवान पर हमला नहीं कर सकता। उन्होंने कहा यूक्रेन जंग के बाद चीन को यह साफ हो गया कि युद्ध के नतीजे क्या हो सकते हैं। यूक्रेन जंग में रूस पूरी तरह से उलझ गया है। अब उसका वहां से निकलना असंभव सा लगता है। उन्होंने कहा कि अमेरिका और पश्चिमी देशों की मदद के चलते यूक्रेन रूस के खिलाफ डटा हुआ है। इसलिए चीन कभी नहीं चाहेगा कि यूक्रेन जैसी स्थिति बने। इसलिए सैन्य अभ्यास के जरिए वह दो संदेश देना चाहता है। पहला कि ताइवान के मामले में किसी की नहीं सुनेगा। वह अपने एजेंडा पर कायम है। वह ताइवान को अपना हिस्सा मानता है और मानता रहेगा। दूसरे, सैन्य अभ्यास के जरिए यह दिखाना चाहता है कि वह कतई दबाव में नहीं है। चीन पूर्व में कह चुका है कि ताइवान यदि शांति पूर्ण ढंग से चीन में शामिल नहीं होता तो वह बलपूर्वक शामिल करेगा।
उधर, ताइवान से जारी तनाव के बीच चीन की सेना ने पूर्वी कमान में ज्यादा भर्ती करने की तैयारी कर ली है। इसके लिए भर्ती की अधिकतम आयुसीमा में दो वर्ष की छूट दी गई है। अब इसे 24 वर्ष से बढ़ा कर 26 वर्ष कर दिया गया है। यानी अब ज्यादा से ज्यादा लोग सेना में शामिल होने के लिए आवेदन कर सकेंगे। बता दें कि पूर्वी कमान ताइवान समेत दक्षिण चीन सागर में आने वाले कई देशों की सीमाओं पर तैनात रहती है। फिलहाल चीन की सेना में 23 लाख सैनिक हैं। चीन के पास दुनिया की सबसे बड़ी सेना है। इसके बावजूद चीन और ज्यादा सैनिक भर्ती करना चाहता है तो इससे उसके इरादों की झलक भी मिल जाती है।
संपादन: अनिल मनोचा