देहरादून: मलिन बस्तियों तथा लोहारी गांव के लोगों को बसे रहने देने के लिए कांग्रेस समेत वामपंथी दलों के लोगों ने मोर्चा खोल दिया है।
इस संदर्भ में सपा के राष्ट्रीय सचिव डॉ. एसएन सचान, विपुल साइंस मूवमेंट के विजय भट्ट, कांग्रेस की प्रवक्ता गरिमा दसौनी और चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल ने मंगलवार को प्रेस क्लब में आयोजित प्रेस वार्ता में सरकार से मांग की कि न्यायालय के आदेश के नाम पर किसी को बेघर न किया जाए। यह प्रक्रिया ग्रामीण और शहरी इलाके, दोनों में दिख रही है। किसी भी परिवार को बेघर करने से बच्चों, बुज़ुर्गों, महिलाओं और अन्य लोगों पर घातक नुक्सान हो सकता है।
उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को नज़र अंदाज़ कर सरकार ने आज तक कोई कदम नहीं उठाया है। गत दिनों नैनीताल उच्च न्यायालय में एक जारी जनहित याचिका में 31 अगस्त को कोर्ट का आदेश आया है कि सरकार देहरादून में बेदखली का अभियान चलाये। सरकार कानून, लोगों की बुनियादी हक़ों और खुद के वादों को कोर्ट के सामने ठीक से नहीं रख पाई। यहां तक कि 2018 के अधिनियम, जिसके बारे में 2021 में शहर भर में बड़े बड़े बैनर लग गए थे, उस अधिनियम के बारे में कोर्ट का आदेश में ज़िक्र ही नहीं है।
इसमें विपक्षी नेताओं और आंदोलनकारियों ने आशंका जताई कि इस आदेश का बहाना बना कर सरकार अभी सैकड़ों या हज़ारों परिवारों को बेघर करने वाली है? इन संगठनों का कहना है कि चाहे लोहारी गांव में या शहरों की मलिन बस्तियों में, अगर किसी कारण से सरकार को लग रहा है कि लोगों को हटाना है , उनको बेघर करने के बजाय उनको पुनर्वास किया जाये, यह सरकार की ज़िम्मेदारी है। वक्ताओं ने कहा कि वे सरकार को इन बिंदुओं की याद दिलाना चाह रहे हैं।
प्रधानमंत्री के आश्वासन की चर्चा करते हुए इन संगठनों ने कहा कि प्रधानमंत्री ने कहा था कि 2022 तक सबको घर मिल जायेगा। लेकिन आठ साल में, प्रधान मंत्री आवास योजना के अंतर्गत देहरादून के सारे क्षेत्रों में कुल मिला कर, मात्र 3,880 घरों को बनाने के लिए सीमित सहयोग दिया गया है। सरकार खुद मानती है कि देहरादून की मलिन बस्तियों में पांच लाख से ज्यादा लोग रहते हैं। वे कहां पर जायेंगे। उन्होंने कहा कि 2018 में जन आंदोलन होने के बाद सरकार ने अध्यादेश लाया था कि तीन साल तक किसी बस्ती को नहीं तोड़ा जायेगा। इसको 2021 में फिर तीन साल के लिए एक्सटेंड किया गया था। उस समय सरकार ने दावा किया कि इन सालों में घरों की व्यवस्था हो जायेगी लेकिन इस पर कोई काम नहीं हुआ है।
वक्ताओं ने मांग की कि जैसे 2018 में कदम उठाये गए, वैसे ही अध्यादेश या अन्य क़ानूनी तरीके से सरकार कदम उठाये ताकि किसी को बेघर न किया जाये और घरों के लिए स्थायी व्यवस्था बनायी जाये।
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