विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस; आत्महत्या करने वाले नब्बे फीसदी व्यक्तियों में मानसिक तनाव और मानसिक रोग के लक्षण पाए जाते हैं। ऐसी स्थिति से गुजरने वाले लोग विपरीत परिस्थितियों का प्रभावी तरीके से सामना नहीं कर पाते और आत्महत्या जैसे गंभीर कदम उठाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि आत्महत्या की रोकथाम के लिए मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में समाज को जागरूक करना जरूरी है।
मिली जानकारी के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य संस्थान के चिकित्सा अधीक्षक प्रोण् दिनेश सिंह राठौर का कहना है कि इस समय कोरोना की वजह से वित्तीय हांनिए स्वास्थ्य खराब होने और प्रियजनों को खोने आदि वजहों से मानसिक तनाव की स्थिति उत्पन्न हुई है। इससे आत्महत्या की आशंका बढ़ती है।
मानसिक स्वास्थ्य संस्थान के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार के मुताबिक विश्व आत्महत्या रोकथाम संगठन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के आह्वान पर 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष की थीम ‘क्रिएटिंग होप थ्रू एक्शन’ है। उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य की इस आकस्मिक स्थिति पर समाज के विभिन्न वर्गों जैसे परिवारीजनों, मित्रों, सहकर्मियों, राजनेताओं, धर्म गुरुओं, स्वास्थ्य कर्मियों, सरकार व समाजसेवियों की सहभागिता को बढ़ाना है।विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस का मनाने का उद्देश्य समाज में आत्महत्या और मानसिक स्वास्थ्य की समस्या के रोकथाम व इसके लिए सरकार की ओर से उपलब्ध कराई जाने वाली सेवाओं के प्रति समाज में जागरूकता फैलाना है।
मानसिक स्वास्थ्य संस्थान के चिकित्सा अधीक्षक प्रो. दिनेश सिंह राठौर का कहना है कि इस समय कोरोना की वजह से वित्तीय हांनि, स्वास्थ्य खराब होने और प्रियजनों को खोने आदि वजहों से मानसिक तनाव की स्थिति उत्पन्न हुई है। इससे आत्महत्या की आशंका बढ़ती है। उन्होंने बताया कि प्रतिवर्ष 8 लाख लोग आत्महत्या करते हैं, जिसमें 70 फीसदी मामले 19 से 44 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों के हैं। भारत युवाओं का देश है, इस वजह से देश, विश्व में आत्महत्या की राजधानी बनने की ओर अग्रसर है। इस समस्या के लिए विशेष प्रयासों की जरूरत है। जब एक युवा आत्महत्या करता है तो उस पर निर्भर परिवार का जीवन अंधकारमय हो जाता है। देश पर प्रशिक्षित मानव संसाधन की हानि की वजह से विपरीत प्रभाव पड़ता है।
आरबीएस कॉलेज की मनोविज्ञान विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर व मनोवैज्ञानिक डॉ. पूनम तिवारी का कहना है कि परिवार के किसी सदस्य, सहपाठी, सहकर्मी का व्यवहार बदला नजर आए तो उसे नजरअंदाज कतई न करें। चिकित्सक या मनोचिकित्सक से तत्काल परामर्श प्राप्त करना चाहिए। हो सकता है कि आप की सजगता से किसी का जीवन बदल जाए। उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले 1090 महिला हेल्पलाइन से उनके पास कॉल आई। एक महिला आत्महत्या करने जा रही है, पुलिस ने उसे घेर रखा है। वह मान नहीं रही थी। डॉ. पूनम तिवारी ने उससे लगातार 45 मिनट तक बात की। काउंसलिंग के बाद महिला ने आत्महत्या का इरादा त्याग दिया और घर जाने की सहमति दे दी। डॉ. पूनम का कहना है कि आत्महत्या निराशा के आवेग की परिणति है। ऐसे व्यक्ति को आधा घंटा रोक लिया जाए तो आत्महत्या का इरादा बदलने की संभावना बढ़ जाती है।
संपादन: अनिल मनोचा