बर्मिंघम; करीब सात महीने से यूक्रेन पर जारी हमले के बीच पुतिन ने बुधवार को बड़ा एलान किया है। पुतिन ने सैन्य लामबंदी का आदेश दिया है। आंशिक लामबंदी और रूसी हथियारों के इस्तेमाल की धमकी देते हुए पुतिन ने यूक्रेन के खिलाफ अपने युद्ध में एक बार फिर से तेजी ला दी है। पुतिन ने एक बार फिर से परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की चेतावनी को दोहराया है। पुतिन के इस बयान पर जमकर आलोचना हो रही है।
पुतिन के इस फैसले को बर्मिंघम यूनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के प्रोफेसर स्टीफन वोल्फ और राष्ट्रीय विश्वविद्यालय ओडेसा लॉ अकादमी के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर तात्याना माल्यारेंक ने जमकर आलोचना की है। इन दोनों ही विशेषज्ञों ने पुतिन द्वारा और अधिक सैनिकों को बुलाए जाने और यूक्रेन को परमाणु धमकी देने पर कहा कि यह सब रूस की कमजोरी को दिखाता है। क्रेमलिन ने डोनेट्स्क, लुहान्स्क, जापोरिज्जिया और खेरसॉन क्षेत्रों के बड़े हिस्से में जनमत संग्रह कराने का एलान किया है। जनमत संग्रह 23 और 27 सितंबर के बीच होने की संभावना है। 2014 में क्रीमिया में भी इसी तरह की प्रक्रिया हुई थी।
फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन और जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज समेत यूक्रेनी और पश्चिमी नेताओं ने पहले ही रूस को बहुत कुछ कहा है। रूस को रोकने की अब कोई संभावना नहीं है। पुतिन को यूक्रेन में नहीं बल्कि रूस में ही आगे बढ़ने के लिए बहाने की जरूरत है। रूस में यूक्रेनी क्षेत्र को शामिल करना, रूसी दृष्टिकोण से इन क्षेत्रों को रूसी कब्जे से रूस के खिलाफ आक्रामकता के कार्य में मुक्त करने के लिए यूक्रेनी सैन्य अभियानों को बदल देगा।
इस बीच, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की का कहना है कि उन्हें नहीं लगता कि रूस यूक्रेन के साथ युद्ध में परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करेगा। उनका यह बयान रूस के उस बयान के बाद आया है, जिसमें राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपनी सीमा की रक्षा के लिए सभी संभव उपाय के इस्तेमाल की बात कही है।
संपादन- अनिल मनोचा