हिमालयन बेल्ट में फाल्ट लाइन के कारण लगातार भूकंप के झटके आ रहे हैं और भविष्य में इसकी आशंका बनी हुई है। इसी फाल्ट पर मौजूद उत्तराखंड में लंबे समय से बड़ी तीव्रता का भूकंप न आने से यहां बड़ा गैप भी बना हुआ है। इससे हिमालयी क्षेत्र में 6 मैग्नीट्यूड से अधिक के भूकंप के बराबर ऊर्जा एकत्र हो रही है।
राज्य में पूर्व में आए बड़ी तीव्रता के भूकंप की बात करें तो 1999 में चमोली में आए भूकंप का मैग्नीट्यूड 6.8, 1991 के उत्तरकाशी में 6.6, 1980 में धारचूला 6.1 मैग्नीट्यूड के भूकंप आ चुके हैं। वहीं नेपाल में बुधवार सुबह आए करीब 6 मैग्नीट्यूड के भूकंप को डैमेजिंग कहा जा रहा है। आईआईटी रुड़की के भूकंप अभियांत्रिकी विभाग के वैज्ञानिक प्रो. एमएल शर्मा ने बताया कि करीब 30 साल के अंतराल में बड़े भूकंप की आशंका प्रबल हो जाती है।
उत्तराखंड में चमोली और उत्तरकाशी में छह मैग्नीट्यूड से अधिक के भूकंप 2000 से पहले के हैं। इसके बाद से बड़ा भूकंप नहीं आया है। उन्होंने बताया कि भूकंप विज्ञान में भूकंप की आशंका के लिए गुटनबर्ग रिएक्टर कैलकुलेशन का उपयोग किया जाता है। समय-समय पर इस कैलकुलेशन से भूकंप की आशंका को प्रतिशत में निकाला जाता है। उन्होंने बताया कि राज्य में भूकंप की दृष्टि से कैलकुलेशन के परिणाम बात रहे हैं कि राज्य में 6 से 7 मैग्नीट्यूड तक का भूकंप आने का चांस 90 प्रतिशत है। ऐसे में भूकंप से पहले की तैयारियों को पुख्ता किया जाना जरूरी है।वैज्ञानिक प्रो. एमएल शर्मा ने बताया कि नेपाल में आए भूकंप का केंद्र धरती से नीचे करीब दस किलोमीटर था और छह मैग्नीट्यूड के आसपास था। इस कारण काफी घातक कहा जा सकता है। वहीं देहरादून और रुड़की की बात करें तो दूरी के हिसाब से यहां इसकी तीव्रता कम रही है। अनुमान मुताबिक देहरादून रुड़की के आसपास इसकी तीव्रता घटकर पांच और दिल्ली में चार के आसपास मानी जाएगी। इसके तहत स्थानीय स्तर पर इसके झटके बहुत कम महसूस किए गए हैं।