उत्तराखंड; नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त कर्मचारियों को बहाल करने के एकलपीठ के आदेश को निरस्त कर दिया है। अदालत ने इन कर्मियों को बर्खास्त करने के विधानसभा सचिवालय के आदेश को सही ठहराया। मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने कहा कि बर्खास्तगी के आदेश को स्थगित नहीं किया जा सकता है।
मिली जानकारी के अनुसार, विस सचिवालय से बर्खास्त कर्मचारी बबिता भंडारी, भूपेंद्र सिंह बिष्ट, कुलदीप सिंह व 102 अन्य की ओर से दायर याचिका पर हाईकोर्ट की एकलपीठ ने इन कर्मियों को बहाल करने के आदेश दिए थे। इसके बाद विधानसभा सचिवालय की ओर से स्पेशल अपीलों के जरिये बहाली आदेश को खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी गई थी। कहा था कि इनकी नियुक्ति कामचलाऊ व्यवस्था के तहत की गई थी। शर्तों के अनुसार इनकी सेवाएं कभी भी बिना नोटिस और बिना कारण के समाप्त की जा सकती हैं। खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश को निरस्त करते हुए विधानसभा सचिवालय के आदेश को सही ठहराया है।
बर्खास्त कर्मियों ने ये तर्क दिया था
विस सचिवालय से बर्खास्त कर्मियों की ओर से दायर याचिकाओं में कहा गया था कि विधान सभा अध्यक्ष ने लोकहित का हवाला देते हुए उनकी सेवाएं 27, 28 , 29 सितंबर को समाप्त कर दीं। बर्खास्तगी आदेश में उन्हें हटाने का आधार और कारण का उल्लेख नहीं किया गया और न ही उन्हें सुना गया जबकि उन्होंने सचिवालय में नियमित कर्मचारियों की तरह कार्य किया है। एक साथ इतने कर्मचारियों को बर्खास्त करना लोकहित नहीं है। यह आदेश विधि विरुद्ध है। याचियों का कहना था कि विधान सभा सचिवालय में 396 पदों पर बैक डोर नियुक्तियां 2002 से 2015 के बीच में भी हुईं जिनको नियमित किया जा चुका है। 2014 तक तदर्थ रूप से नियुक्त कर्मचारियों को चार वर्ष से कम की सेवा में नियमित नियुक्ति दे दी गई लेकिन उन्हें छह वर्ष के बाद भी स्थायी नहीं किया। अब उन्हें हटा दिया गया।