उत्तराखण्ड; प्रदेश के नगर निगम और नगर निकाय अपने संसाधनों से वसूली करने में काफी पीछे हैं। वह केवल सरकारी बजट पर ही निर्भर हैं। निकायों की ऑडिट रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। मंगलवार को विधानसभा पटल पर रखी गई निकायों की 2018-19 की ऑडिट रिपोर्ट से स्पष्ट हो रहा है कि खुद कमाई करने के बजाए निकाय किस तरह सरकारी ग्रांट पर ही निर्भर हैं।
मिली जानकारी के अनुसार, निकायों को 90 प्रतिशत से अधिक राजस्व वसूली करनी चाहिए, लेकिन इस मामले में वह बिल्कुल पीछे हैं। इसी प्रकार, हाउस टैक्स वसूली में 12 में से छह निकाय तो ऐसे हैं, जो कि 50 प्रतिशत टैक्स भी नहीं वसूल पाए। जांच में पाया गया कि शहरी स्थानीय निकाय हाउस टैक्स से अपने संसाधनों को बढ़ाने में विफल साबित हुए।
प्रदेश के सात शहरी स्थानीय निकायों में यह देखा गया कि 31 मार्च 2017 तक 138.39 लाख के किराये के प्रभार की वसूली लंबित थी। चार शहरी निकायों में 31 मार्च 2018 तक 62.52 लाख रुपये की वसूली लंबित थी। दुकानों का किराया वसूलने में निकाय फिसड्डी साबित हो रहे हैं।
सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेंशन, ग्रेच्युटी, पीएफ, अवकाश नकदीकरण और सेवारत कर्मचारियों के भत्तों के भुगतान में भी निकाय फेल साबित हो रहे हैं। नगर निगम हरिद्वार, नगर पालिका रामनगर, टनकपुर और नगर निगम हल्द्वानी के अभिलेखों में पाश गया कि उनकी देनदारियां लगातार बढ़ती जा रही हैं।
संपादन : अनिल मनोचा