उत्तराखण्ड; राज्य सरकार के सामने प्रस्तावित नए भूमि संशोधन कानून में स्थानीय भू स्वामियों के हितों और विकास के लिए जरूरी निवेश के बीच संतुलन साधने की चुनौती खड़ी हो गई है। भू-कानून के लिए गठित समिति ने उस भूमि को राज्य सरकार में समाहित करने की सिफारिश कर रखी है, जिसका तय समय-सीमा में उद्देश्य के मुताबिक उपयोग नहीं हो पाया है।
आशंका यह है कि राज्य सरकार यदि ऐसी भूमि अधिग्रहित करती है तो इससे निवेश प्रभावित हो सकता है, जबकि राज्य सरकार का जोर निवेश को प्रोत्साहित करने पर है। पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता वाली भू-कानून समिति ने यह पाया था कि राज्य में पिछले कुछ वर्षों में कई निवेशकों ने अलग-अलग उद्देश्य से भूमि खरीदी।
कुछ ने उसका दूसरा उपयोग किया और कुछ ने तय समय सीमा के बावजूद उसका कोई उपयोग नहीं किया। समिति की रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद अब शासन स्तर पर इसका परीक्षण हो रहा है। समिति ने अपनी सिफारिशों में रोजगार आधारित उद्योगों में निवेश के लिए भूमि देने की सिफारिश की है लेकिन इसमें स्वास्थ्य क्षेत्र शामिल नहीं है। जबकि कुछ निवेशक जिनके पास पहले से ही भूमि है, चिकित्सालयों के निर्माण में निवेश के इच्छुक हैं।
भूमि का दूसरा उपयोग करना चाहते हैं निवेशक : सूत्रों के मुताबिक, तय समय-सीमा में भूमि का उपयोग नहीं कर पाए निवेशक सरकार से यह अपेक्षा कर रहे हैं कि उन्हें भूमि का दूसरा उपयोग करने की अनुमति मिले। वे पर्यटन, स्वास्थ्य व सेवा क्षेत्र में भूमि का उपयोग करना चाहते हैं। लेकिन दिक्कत की बात यह है कि नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। इसलिए यहां पेच फंसा हुआ है।