उत्तराखण्ड; लोकायुक्त बिल विधानसभा प्रवर समिति की पांच बैठकें कर चुकी थीं। लेकिन बिल पर समिति की सिफारिशें अंतिम नतीजे पर नहीं पहुंच पाई। 2017 में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रकाश पंत की अध्यक्षता में प्रवर समिति बनाई गई थी। लेकिन 2019 में उनके निधन के बाद प्रवर समिति लोकायुक्त पर आगे नहीं बढ़ पाई।
2018 में त्रिवेंद्र सरकार के समय लोकायुक्त विधेयक सदन पटल पर रखा गया था। इस बिल को विधानसभा प्रवर समिति को सौंपा गया। जिसमें तत्कालीन वित्त मंत्री प्रकाश पंत को समिति का अध्यक्ष बनाया गया। इसमें भाजपा विधायक मुन्ना सिंह चौहान, महेंद्र भट्ट, विपक्ष के प्रीतम सिंह समेत सात सदस्य थे। लोकायुक्त बिल पर प्रवर समिति ने लगभग पांच बैठकें भी कर ली थी। साथ ही बिल पर लोगों से ऑनलाइन सुझाव लिए गए थे।
वर्ष 2019 में वित्त मंत्री प्रकाश पंत के आकस्मिक निधन हो गया। इसके बाद प्रवर समिति लोकायुक्त बिल आगे नहीं बढ़ पाई और न ही सिफारिशों की रिपोर्ट विधानसभा अध्यक्ष को सौंपी। अब हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सरकार को 8 सप्ताह में लोकायुक्त नियुक्ति करने का आदेश दिया है।
समिति कार्यवाही विधानसभा की संपत्ति, स्पीकर को विचार और निर्णय लेने का अधिकार : प्रवर समिति के सदस्य रहे विधायक मुन्ना सिंह चौहान का कहना है कि सदन में किसी भी मामले में यदि लगता है कि इसमें कुछ कमी रह गई है, उस पर विचार के लिए प्रवर समिति को सौंपा जाता है। प्रवर समिति सदन की होती है। समिति का प्रत्यावेदन भी सदन को जाता है। तकनीकी रूप से प्रवर समिति की कार्यवाही सदन की संपत्ति है। जो खत्म नहीं होती है। समिति की कार्यवाही पर स्पीकर को विचार व निर्णय लेने का अधिकार है। प्रवर समिति का पुनर्गठन भी किया जाता है।