उत्तराखंड; राज्य आंदोलनकारियों की सरकारी नौकरी में क्षैतिज आरक्षण की तेरह साल बाद पुरी हुई मुराद पुरी हुई है। विधेयक को राजभवन की मंजूरी मिलने से 2004 से सरकारी सेवा में शामिल आंदोलनकारियों की सेवाओं को वैधता मिलेगी। राज्य आंदोलनकारियों में जबरदस्त खुशी है।
उनका कहना है कि राज्य आंदोलन के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि है। दरअसल 2004 में एनडी तिवारी सरकार में आंदोलनकारियों को नौकरी में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण का शासनादेश किया था। शासनादेश के आधार पर करीब 1,700 आंदोलनकारी सरकारी सेवा में लगे, लेकिन 2011-12 में इस शासनादेश को हाईकोर्ट में चुनौती देने के बाद राज्य आंदोलनकारियों और उनके आश्रितों को नौकरी में इस शासनादेश का लाभ नहीं मिल पा रहा था।
इसे देखते हुए वर्ष 2016 में तत्कालीन हरीश रावत सरकार में आरक्षण को कानूनी रूप देने के लिए सदन में विधेयक लाकर इसे मंजूरी के लिए राजभवन भेजा गया था, जो कई साल तक राजभवन में लंबित रहा। इस बीच मार्च 2018 में हाईकोर्ट ने राज्य आंदोलनकारियों को नौकरी में आरक्षण के शासनादेश को असांवधानिक घोषित कर दिया।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने पहले कार्यकाल में वर्ष 2021 में कैबिनेट से प्रस्ताव पारित कर राजभवन को आरक्षण के मसले से अवगत कराया। वर्ष 2022 में राजभवन से विधेयक कुछ आपत्ति के साथ वापस भेजने पर धामी सरकार ने सितंबर 2023 में इसे विस में पेश किया। जिसे फरवरी 2024 को प्रवर समिति की सिफारिश के साथ राजभवन भेजा गया।
विधेयक में ये है व्यवस्था
- राज्य आंदोलनकारियों के साथ ही सभी पात्र आश्रितों को आरक्षण का लाभ मिलेगा।
- 2004 से क्षैतिज आरक्षण के माध्यम से सरकारी सेवा में शामिल हो चुके आंदोलनकारियों की सेवाओं को मिलेगी वैधता।
- चिह्नित आंदोलनकारियों की पत्नी या पति, पुत्र एवं पुत्री के साथ ही विवाहिता, विधवा, पति द्वारा परित्यक्त, तलाकशुदा पुत्री को इसमें शामिल किया गया है।
- विधेयक को मंजूरी मिलने से 11,420 आंदोलनकारियों और उनके आश्रितों को मिलेगा लाभ।
कब क्या हुआ
- 2004 में एनडी तिवारी की सरकार में राज्य आंदोलनकारियों को नौकरी में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण का शासनादेश हुआ।
- इस शासनादेश के आधार पर करीब 1,700 आंदोलनकारी सरकारी नौकरी में लगे।
- वर्ष 2016 में हरीश रावत सरकार में आरक्षण को कानूनी रूप देने के लिए मंत्रिमंडल ने विधेयक पास कर राजभवन भेजा।
- वर्ष 2021 में सीएम धामी ने अपने पहले कार्यकाल में कैबिनेट से प्रस्ताव पास कर राजभवन को आरक्षण के मसले से अवगत कराया।
- वर्ष 2022 में राजभवन से विधेयक कुछ आपत्ति के साथ वापस भेजा गया।
- सितंबर 2023 में पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने विधेयक को सदन में पेश किया।
- छह फरवरी 2024 को विधेयक कुछ संशोधनों के साथ फिर से राजभवन भेजा गया।
-रविंद्र जुगरान, पूर्व अध्यक्ष, राज्य आंदोलनकारी सम्मान परिषद