उत्तराखंड; उत्तराखंड की जैंजी यानि युवा पीढ़ी देश-दुनिया में पहचान बनाने के साथ उन स्थानों को ही अपना ठिकाना बना रही है। उन्हें अपने राज्य से बेहद लगाव तो है लेकिन चाव (चाहत) नहीं दिखाती। जबकि उसकी चाहत और क्षमताओं से राज्य 24 सालों में उन्नति, प्रगति और समृद्धि के मुकाम पर नए कीर्तिमान गढ़ सकता था। उनकी दृष्टि में संसाधन-मौकों की कमी से कहीं अधिक महत्वपूर्ण इच्छाशक्ति व दृढ़ विश्वास है, जिसकी कमी उन्हें दूर कर रही है।
बीते सालों में राज्य के अगुवाकार शायद नई पीढ़ी को उस तरह का विश्वास दिलाने में नाकाम रहे हैं कि उनमें युवाओं को साथ लेकर राज्य को दिशा देने की इच्छा शक्ति है। ऐसा भी कतई नहीं कि राजनीतिक अगुवाकारों ने अपनी-अपनीसोच-समझ, सरोकार, संवदेनशीलता और संभावनाओं से राज्य को आगे बढ़ाने में कोईकोर-कसर छोड़ी हो और राज्य पिछड़ गया। लेकिन राजनीतिक खींचतान, बदलतेइंजनों से राज्य को 25वें साल में प्रवेश के समय तय गंतव्य तक पहुंचने मेंविलब हुआ। जबकि उत्तराखंड के साथ बने अन्य राज्य कहीं आगे हैं।