उत्तराखण्ड; अमूमन जेल में बंद कैदी बाहर निकलने के लिए तमाम प्रयास करते हैं। उनके परिजन भी अच्छे से अच्छे वकील का इंतजाम कर उन्हें जेल से बाहर निकालने की जुगत में जुटे रहते हैं, लेकिन हल्द्वानी स्थित उप कारागार में कुछ बंदी ऐसे हैं, जिन्हें न्यायालय से जमानत तो मिल चुकी है, लेकिन जमानती नहीं मिलने से उन्हें जेल में रहने को मजबूर होना पड़ रहा है।
परिजन भी इनकी जमानत कराने नहीं आ रहे हैं। हल्द्वानी स्थित उप कारागार में छह बंदी ऐसे हैं, जिन्हें न्यायालय से जमानत मिल चुकी है। इनमें से कुछ बंदी एक साल से जमानती के आने का इंतजार कर रहे हैं, जबकि अन्य पांच से छह माह से जमानती की राह देख रहे हैं। लेकिन इन्हें बाहर निकालने के लिए न तो परिजन आ रहे हैं और न ही परिचित।
ऐसे में वह लम्बे समय से जेल में रहने को मजबूर हैं। जेल कर्मचारियों के मुताबिक ऐसा भी नहीं है कि इनकी जमानत के लिए बड़ी धनराशि की आवश्यकता है। इसके बाद भी जमानत के लिए किसी का नहीं आना हैरानी की बात है। या यूंं कहें कि जेल जाते ही परिजनों ने इनसे मुंह मोड़ लिया है।
हल्द्वानी। जेल में कुछ कैदी ऐसे भी हैं, जिनसे अपनों ने ही मुंह मोड़ लिया है। अमूमन जेल परिसर में कैदियों से मिलने के लिए उनके जानने वालों का तांता लगा रहता है, लेकिन कई कैदी ऐसे हैं, जिनसे मिलने कोई नहीं आता है। इसके अलावा कुछ कैदी ऐसे हैं, जो परिजनों से मिलना नहीं चाहते हैं।
हल्द्वानी। उप कारागार में दिन-प्रतिदिन बंदियों की संख्या बढ़ती जा रही है। जेल में तय संख्या के सापेक्ष बंदियों की संख्या तीन गुना अधिक पहुंच गई है। ऐसे में जमानत पा चुके बंदियों के अब भी अंदर होने से जेल प्रशासन की टेंशन बनी रहती है। इसके अलावा उन बंदियों का खर्च भी जेल प्रशासन को उठाना पड़ रहा है।
उप कारागार में छह बंदी ऐसे हैं, जिन्हें कोर्ट से जमानत मिल चुकी है। इसके बाद भी वे नहीं छूट पाए हैं। जब तक वह जेल में हैं, उनकी जिम्मेदारी जेल प्रशासन की है। उनकी देखरेख अन्य कैदियों की तरह की जा रही है।
आरपी सैनी, डिप्टी जेलर उप कारागार हल्द्वानी।