नरसिंहपुर; द्वारका शारदा पीठ व ज्योर्तिमठ बदरीनाथ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज रविवार दोपहर 3.21 बजे मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में ब्रह्मलीन हो गए। वह लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे। बीते हरितालिका पर्व पर भक्तों ने उनका 99वां प्रकटोत्सव मनाया था। उन्हें आश्रम में ही सोमवार सायं चार बजे समाधि दी जाएगी। स्वामी स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती अपनी बेबाक बयानी के लिए भी चर्चित थे। उनके निधन से संत समाज में शोक है।
दो सितंबर, 1924 को मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में दिघोरी गांव में जन्म लेने वाले स्वामी स्वरूपानंद के बचपन का नाम पोथीराम उपाध्याय था। उन्होंने नौ वर्ष की उम्र में ही घर-परिवार छोड़ कर धर्म यात्रा पर निकल पड़े। इस दौरान वह काशी पहुंचे, जहां स्वामी करपात्री महाराज से वेद-वेदांत व शास्त्रों की शिक्षा ली। यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करने की लड़ाई चल रही थी।
1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और 19 वर्ष की उम्र में वह क्रांतिकारी साधु के रूप में प्रसिद्ध हुए। इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में नौ और मध्य प्रदेश की जेल में छह महीने की सजा भी काटी। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह समेत अनेक वरिष्ठ नेता उनके अनुयायी रहे हैं।