रामपुर तिराहा गोलीकांड; वह मंजर देख आज भी खून खौल उठता है। रामपुर तिराहा गोलीकांड (2 अक्टूबर 1994) की भयावह यादेें आज भी राज्य आंदोलनकारी और यूकेडी के पूर्व केंद्रीय कार्यकारी अध्यक्ष सुरेंद्र कुकरेती के जेहन में ताजा हैं। उनका कहना है कि उत्तराखंड को कलंकित करने वाले इस गोलीकांड के 27 साल बाद भी दोषी अधिकारी दंडित नहीं हुए हैं।
मिली जानकारी के अनुसार, वर्ष 1994 में गांधी जयंती पर दिल्ली के रामलीला मैदान में पृथक उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर रैली प्रस्तावित थी। रैली के लिए सुरेंद्र कुकरेती को गढ़वाल मंडल का प्रभारी बनाया गया था। ऋषिकेश चुंगी नंबर एक पर गढ़वाल मंडल से आने वाली बसों को इकट्ठा करनी की योजना थी। यहीं से एक साथ दिल्ली कूच किया जाना था। कुकरेती बताते हैं कि रैली को लेकर लोगों में भारी उत्साह था। जिस कारण चमोली, चमोली, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग आदि जगहों से आने वाली बसें सीधे दिल्ली कूच कर गईं।
तब रुड़की गढ़वाल सभा के लोग एंबुलेंस लेकर मदद के लिए पहुंचे। घायलों को रुड़की अस्पताल में भर्ती कराया गया। गोलीकांड में सात लोग शहीद हो गए, चार लापता थे। जिन्हें बाद में शहीद का दर्जा दिया गया। कुकरेती बताते हैं कि आंदोलनकारियों का क्रूरतापूर्ण दमन देख वह निहत्थे ही पीएसी के जवानों से भिड़ गए। उन्हें बटों से मारा गया। उनका कहना है आज भी वह मंजर देख खून खौल उठता है। सीबीआई जांच में 16 मातृशक्ति पर अत्याचार की पुष्टि हुई। दोषी अधिकारियों को अभी तक दंडित नहीं किया गया है, जो उनके मन को हमेशा कचोटता रहेगा। कहा कि 42 शहादतों और गांधीवादी तरीके से राज्य प्राप्ति हुई।