उत्तराखण्ड; सपा संरक्षक मुलायम सिंह के निधन के बाद अब अखिलेश यादव के सामने पार्टी ही नहीं बल्कि परिवार को भी बचाए रखने की चुनौती होगी। सैफई के चौराहों-चौराहों पर ही नहीं पूरे देश की निगाहें अब टीपू यानी अखिलेश यादव पर हैं। उन पर आरोप लगता रहा है कि वह युवा ब्रिगेड के कुछ नेताओं से घिरे रहते हैं और उनके सिवा किसी की बात कम ही सुनते हैं। सैफई के हर सुख-दुख का साथी बनना और परिवार के बुजुर्गों को लेकर चलना उनके ही कंधों पर है। तभी एक आवाज उठ रही है कि अब टीपू को बनना होगा ‘मुलायम’।
मिली जानकारी के अनुसार, अखिलेश के सामने अपने यादव कुनबे को एकजुट रखने के साथ-साथ सपा के सियासी आधार और मुलायम के एम-वाई समीकरण को साधे रखने की चुनौती होगी। इतना ही नहीं मुलायम की मैनपुरी सीट पर नेताजी के सियासी वारिस को भी तलाशना होगा। मुलायम सिंह यादव अपने जीते ही अपनी सियासी विरासत को अखिलेश यादव के हवाले कर गए, लेकिन अब आने वाले वक्त में अखिलेश को कई बड़े और कड़े इम्तिहान से गुजरना होगा। ‘नेताजी’ के साथ कार्यकर्ता और समर्थकों के साथ उनके भावात्मक रिश्ते की डोर को अखिलेश कितनी मजबूती से बांध पाते हैं। मुलायम के बिना सपा के लिए आगे की राजनीतिक राह कितनी मुश्किल होगी या सपा आगे कितना बढ़ेगी, यह अखिलेश यादव के सियासी कौशल पर निर्भर करेगा।
आने वाले वक्त में अखिलेश यादव को कई बड़े व कड़े इम्तहान से गुजरना होगा। इसमें उन्हें भाजपा से जूझना होगा और शिवपाल यादव की पार्टी से भी। आगे मैनपुरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव होना है। मुलायम सिंह इसी सीट से सांसद थे। निकाय चुनाव है और सबसे बड़ा इम्तहान तो 2024 का लोकसभा चुनाव है। ‘नेताजी’ के न रहने पर अब सपा कार्यकर्ताओं को सदमे से उबारना और चुनाव के लिए तैयार करना सपा के लिए मुश्किल काम है।
संपादन: अनिल मनोचा