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उत्तराखण्ड; देश की नई शिक्षा नीति गढ़वाल विश्वविद्यालय के कॉलेजों में मजाक बनकर रह गई। यहां न तो छात्रों को पढ़ने के लिए विषयों को विकल्प दिया गया और न ही पढ़ाने के लिए शिक्षकों का इंतजाम। हालात यह हैं कि सिलेबस न आने की वजह से छात्र और शिक्षक परेशान हैं।
मिली जानकारी के अनुसार, बीएससी पीसीएम में तीन ग्रुप बनाए गए। कोर-1 ग्रुप में केमिस्ट्री, फिजिक्स, मैथ्स, कोर-2 ग्रुप में केमिस्ट्री, मैथ्स, फिजिक्स और एडिशनल सब्जेक्ट ग्रुप में केमिस्ट्री, मैथ्स व फिजिक्स का विकल्प दिया गया। इसी प्रकार, बीएससी सीबीजेड : कोर-1 ग्रुप में बॉटनी, केमिस्ट्री, जूलॉजी, कोर-2 ग्रुप में बॉटनी, केमिस्ट्री, जूलॉजी और एडिशनल सब्जेक्ट ग्रुप में बॉटनी, केमिस्ट्री जूलॉजी का विकल्प दिया गया। बीए में भी इसी तरह से विषयों का विकल्प दिया गया है।
नई शिक्षा नीति के मुताबिक, छात्रों को दो क्रेडिट के वैल्यू एडेड कोर्स और दो क्रेडिट के स्किल एनहांसमेंट कोर्स पढ़ने हैं। इसके लिए एनवायरमेंट साइंस और स्किल एनहांसमेंट में योगा जैसे कोर्स शामिल हैं। गजब बात यह है कि डीएवी, डीबीएस, एमकेपी, एसजीआरआर जैसे किसी भी कॉलेज में इन पाठ्यक्रमों को पढ़ाने वाला टीचर नहीं है
दरअसल, इसमें किसी भी छात्र को विषयों के चयन की आजादी है। मसलन, बीएससी में वह फिजिक्स, केमिस्ट्री के साथ ही तीसरे विषय के तौर पर बॉटनी ले सकता है। विषय तीन समूह में बंटे होते हैं। कोर-1 के लिए छह क्रेडिट, कोर-2 के लिए छह और एडिशनल सब्जेक्ट के लिए चार क्रेडिट तय हैं।
गढ़वाल विश्वविद्यालय ने अपने संबद्ध कॉलेजों पर नई शिक्षा नीति लागू तो कर दी है लेकिन अभी तक पूरे विषयों के सिलेबस नहीं मिले हैं। हालात यह हैं कि मुख्य विषयों के शिक्षकों भी को बेसिक पढ़ाना पड़ रहा है। सिलेबस न आने की वजह से छात्र चिंतित हैं कि आखिर परीक्षा कैसे देंगे। मामले में पक्ष जानने के लिए गढ़वाल विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो.अन्नपूर्णा नौटियाल को फोन किया गया लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई, जब उनका पक्ष आएगा तो वह भी प्रकाशित किया जाएगा।
कॉलेजों के लिए नई शिक्षा नीति बड़ा सिरदर्द बन गई है। डीएवी कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ.केआर जैन का कहना है कि चूंकि उनके पास पीसीएम, सीबीजेड, पीएमएस से अलग ग्रुप के लिए कोर्स गढ़वाल विवि से एप्रूव नहीं हैं, इसलिए वह नए विकल्प देने में असमर्थ थे। उन्होंने बताया कि सिलेबस के लिए भी वह लगातार विवि से पत्राचार कर रहे हैं।
संपादन: अनिल मनोचा